Ghalib Shayari
List of Top 20 famous Urdu Sher of Mirza Ghalib selected by shayari mafiya. For the meaning of Urdu words you do not understand, click on that word.
कोई दिन और
मैं उन्हें छेड़ूँ और कुछ न कहें
चल निकलते जो में पिए होते
क़हर हो या भला हो , जो कुछ हो
काश के तुम मेरे लिए होते
मेरी किस्मत में ग़म गर इतना था
दिल भी या रब कई दिए होते
आ ही जाता वो राह पर ‘ग़ालिब ’
चल निकलते जो में पिए होते
क़हर हो या भला हो , जो कुछ हो
काश के तुम मेरे लिए होते
मेरी किस्मत में ग़म गर इतना था
दिल भी या रब कई दिए होते
आ ही जाता वो राह पर ‘ग़ालिब ’
इश्क़
ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया
गैर
ले महफ़िल में बोसे जाम के
हम
रहें यूँ तश्ना-ऐ-लब पैगाम के
खत
लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो
हम
तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के
इश्क़
ने “ग़ालिब” निकम्मा कर दिया
वरना
हम भी आदमी थे काम के
हम रहें यूँ तश्ना-ऐ-लब पैगाम के
खत लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो
हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के
इश्क़ ने “ग़ालिब” निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के
बाद
मरने के मेरे
चंद
तस्वीर-ऐ-बुताँ , चंद हसीनों के खतूत .
बाद
मरने के मेरे घर से यह सामान निकला
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बाद मरने के मेरे घर से यह सामान निकला
Mirza Ghalib Shayari
दिया
है दिल अगर
दिया
है दिल अगर उस को , बशर है क्या कहिये
हुआ
रक़ीब तो वो , नामाबर है , क्या कहिये
यह
ज़िद की आज न आये और आये बिन न रहे
काजा से शिकवा हमें किस क़दर है , क्या कहिये
ज़ाहे
-करिश्मा के यूँ दे रखा है हमको फरेब
की
बिन कहे ही उन्हें सब खबर है , क्या कहिये
समझ
के करते हैं बाजार में वो पुर्सिश -ऐ -हाल
की
यह कहे की सर -ऐ -रहगुज़र है , क्या कहिये
तुम्हें
नहीं है सर-ऐ-रिश्ता-ऐ-वफ़ा का ख्याल
हमारे
हाथ में कुछ है , मगर है क्या कहिये
कहा
है किस ने की “ग़ालिब ” बुरा नहीं लेकिन
सिवाय
इसके की आशुफ़्तासार है क्या कहिये
हुआ रक़ीब तो वो , नामाबर है , क्या कहिये
काजा से शिकवा हमें किस क़दर है , क्या कहिये
की बिन कहे ही उन्हें सब खबर है , क्या कहिये
की यह कहे की सर -ऐ -रहगुज़र है , क्या कहिये
हमारे हाथ में कुछ है , मगर है क्या कहिये
सिवाय इसके की आशुफ़्तासार है क्या कहिये
दिल-ऐ
-ग़म गुस्ताख़
फिर
तेरे कूचे को जाता है ख्याल
दिल
-ऐ -ग़म गुस्ताख़ मगर याद आया
कोई
वीरानी सी वीरानी है .
दश्त
को देख के घर याद आया
दिल -ऐ -ग़म गुस्ताख़ मगर याद आया
कोई वीरानी सी वीरानी है .
दश्त को देख के घर याद आया
हसरत
दिल में है
सादगी
पर उस के मर जाने की हसरत दिल में है
बस
नहीं चलता की फिर खंजर काफ-ऐ-क़ातिल में है
देखना
तक़रीर के लज़्ज़त की जो उसने कहा
मैंने
यह जाना की गोया यह भी मेरे दिल में है
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बस नहीं चलता की फिर खंजर काफ-ऐ-क़ातिल में है
देखना तक़रीर के लज़्ज़त की जो उसने कहा
मैंने यह जाना की गोया यह भी मेरे दिल में है
Ghalib ki Shayari
बज़्म-ऐ-ग़ैर
मेह
वो क्यों बहुत पीते बज़्म-ऐ-ग़ैर में या रब
आज
ही हुआ मंज़ूर उन को इम्तिहान अपना
मँज़र
इक बुलंदी पर और हम बना सकते “ग़ालिब”
अर्श
से इधर होता काश के माकन अपना
आज ही हुआ मंज़ूर उन को इम्तिहान अपना
मँज़र इक बुलंदी पर और हम बना सकते “ग़ालिब”
अर्श से इधर होता काश के माकन अपना
साँस
भी बेवफा
मैं
नादान था जो वफ़ा को
तलाश
करता रहा “ग़ालिब”
यह
न सोचा के एक दिन अपनी साँस भी
बेवफा
हो जाएगी
तलाश करता रहा “ग़ालिब”
यह न सोचा के एक दिन अपनी साँस भी
बेवफा हो जाएगी
सारी
उम्र
तोड़ा
कुछ इस अदा से
तालुक़
उस ने “ग़ालिब”
के
सारी उम्र अपना क़सूर ढूँढ़ते रहे
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तालुक़ उस ने “ग़ालिब”
के सारी उम्र अपना क़सूर ढूँढ़ते रहे
Ghalib Sher
इश्क़
में
बे-वजह
नहीं रोता
इश्क़
में कोई “ग़ालिब”
जिसे
खुद से बढ़ कर चाहो
वो
रूलाता ज़रूर है
इश्क़ में कोई “ग़ालिब”
जिसे खुद से बढ़ कर चाहो
वो रूलाता ज़रूर है
जवाब
क़ासिद
के आते -आते खत एक और लिख रखूँ
मैं
जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में
जन्नत
की हकीकत
हमको
मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन
दिल
के खुश रखने को “ग़ालिब”
यह
ख्याल अच्छा है
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दिल के खुश रखने को “ग़ालिब”
यह ख्याल अच्छा है
Mirza Ghalib Shayari in Hindi
बेखुदी
बेसबब नहीं ‘ग़ालिब
फिर
उसी बेवफा पे मरते हैं
फिर
वही ज़िन्दगी हमारी है
बेखुदी
बेसबब नहीं “ग़ालिब”
कुछ
तो है जिस की पर्दादारी है
फिर वही ज़िन्दगी हमारी है
बेखुदी बेसबब नहीं “ग़ालिब”
कुछ तो है जिस की पर्दादारी है
शब-ओ-रोज़
तमाशा
बाजीचा-ऐ-अतफाल
है दुनिया मेरे आगे
होता
है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे
कागज़
का लिबास
सब
ने पहना था बड़े शौक से कागज़ का लिबास
जिस
कदर लोग थे बारिश में नहाने वाले
अदल
के तुम न हमे आस दिलाओ
क़त्ल
हो जाते हैं , ज़ंज़ीर हिलाने वाले
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जिस कदर लोग थे बारिश में नहाने वाले
अदल के तुम न हमे आस दिलाओ
क़त्ल हो जाते हैं , ज़ंज़ीर हिलाने वाले
Mirza ghalib shayari in Urdu
वो
निकले तो दिल निकले
ज़रा
कर जोर सीने पर की तीर-ऐ-पुरसितम्
निकले
जो……!!!
वो
निकले तो दिल निकले ,
जो
दिल निकले तो दम निकले
निकले जो……!!!
वो निकले तो दिल निकले ,
जो दिल निकले तो दम निकले
खुदा
के वास्ते
खुदा
के वास्ते पर्दा न रुख्सार से
उठा
ज़ालिम..!!!
कहीं
ऐसा न हो जहाँ भी
वही
काफिर सनम निकले
उठा ज़ालिम..!!!
कहीं ऐसा न हो जहाँ भी
वही काफिर सनम निकले
तेरी
दुआओं में असर
तेरी
दुआओं में असर हो तो
मस्जिद
को हिला के दिखा
नहीं
तो दो घूँट पी और
मस्जिद
को हिलता देख
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Mirza ghalib shayari in Urdu
मस्जिद को हिला के दिखा
नहीं तो दो घूँट पी और
मस्जिद को हिलता देख
Mirza ghalib shayari in Urdu
जिस
काफिर पे दम निकले
मोहब्बत
मैं नहीं है
फ़र्क़
जीने और मरने का
उसी
को देख कर जीते है
जिस
काफिर पे दम निकले
फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते है
जिस काफिर पे दम निकले
लफ़्ज़ों
की तरतीब
लफ़्ज़ों
की तरतीब
मुझे
बांधनी नहीं आती “ग़ालिब“
हम
तुम को याद करते हैं
सीधी
सी बात है
मुझे बांधनी नहीं आती “ग़ालिब“
हम तुम को याद करते हैं
सीधी सी बात है
काफिर
दिल
दिया जान के क्यों उसको वफादार , असद
ग़लती
की के जो काफिर को,
मुस्लमान
समझा..!!!
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Mirza Ghalib Poetry
ग़लती की के जो काफिर को,
मुस्लमान समझा..!!!
Mirza Ghalib Poetry
नज़ाकत
इस
नज़ाकत का बुरा हो , वो भले हैं तो क्या
हाथ
आएँ तो उन्हें हाथ लगाए न बने
कह
सके कौन के यह जलवागरी किस की है
पर्दा
छोड़ा है वो उस ने के उठाये न बने
हाथ आएँ तो उन्हें हाथ लगाए न बने
कह सके कौन के यह जलवागरी किस की है
पर्दा छोड़ा है वो उस ने के उठाये न बने
तनहा
लाज़िम
था के देखे मेरा रास्ता कोई दिन और
तनहा
गए क्यों , अब रहो तनहा कोई दिन और
तनहा गए क्यों , अब रहो तनहा कोई दिन और
मेरी
वेहशत
इश्क़
मुझको नहीं वेहशत ही सही
मेरी
वेहशत तेरी शोहरत ही सही
कटा
कीजिए न तालुक हम से
कुछ
नहीं है तो अदावत ही सही
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Ghalib Poetry
मेरी वेहशत तेरी शोहरत ही सही
कटा कीजिए न तालुक हम से
कुछ नहीं है तो अदावत ही सही
Ghalib Poetry
तो
धोखा खायें क्या
लाग्
हो तो उसको हम समझे लगाव
जब
न हो कुछ भी , तो धोखा खायें क्या
जब न हो कुछ भी , तो धोखा खायें क्या
जोश
-ऐ -अश्क
“ग़ालिब” हमें न छेड़ की
फिर जोश-ऐ-अश्क से
बैठे हैं हम तहय्या-ऐ-तूफ़ान किये हुए
फिर जोश-ऐ-अश्क से
बैठे हैं हम तहय्या-ऐ-तूफ़ान किये हुए
उल्फ़त
ही क्यों न हो
उल्फ़त
पैदा हुई है , कहते हैं , हर दर्द की दवा
यूं हो हो तो चेहरा -ऐ -गम उल्फ़त ही क्यों न हो
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यूं हो हो तो चेहरा -ऐ -गम उल्फ़त ही क्यों न हो
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Galib ki Shairy
ऐसा
भी कोई
“ग़ालिब ” बुरा न मान जो वैज बुरा कहे
ऐसा
भी कोई है के सब अच्छा कहे जिसे
ऐसा भी कोई है के सब अच्छा कहे जिसे
तमन्ना
कोई दिन और
नादान
हो जो कहते हो क्यों जीते हैं “ग़ालिब “
किस्मत
मैं है मरने की तमन्ना कोई दिन और
किस्मत मैं है मरने की तमन्ना कोई दिन और
आशिक़
का गरेबां
हैफ़
उस चार गिरह कपड़े की किस्मत ग़ालिब
जिस
की किस्मत में हो आशिक़ का गरेबां होना
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Ghalib Shayari
जिस की किस्मत में हो आशिक़ का गरेबां होना
Ghalib Shayari
इश्क़
आया
है मुझे बेकशी इश्क़ पे रोना ग़ालिब
किस
का घर जलाएगा सैलाब भला मेरे बाद
किस का घर जलाएगा सैलाब भला मेरे बाद
शमा
गम-ऐ-हस्ती
का असद
किस
से हो जूझ मर्ज इलाज
शमा
हर रंग मैं जलती है सहर होने तक ..
किस से हो जूझ मर्ज इलाज
शमा हर रंग मैं जलती है सहर होने तक ..
जोश -ऐ -अश्क
“ग़ालिब” हमें न छेड़ की
फिर जोश-ऐ-अश्क से
बैठे हैं हम तहय्या-ऐ-तूफ़ान किये हुए
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“ग़ालिब” हमें न छेड़ की
फिर जोश-ऐ-अश्क से
बैठे हैं हम तहय्या-ऐ-तूफ़ान किये हुए
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फिर जोश-ऐ-अश्क से
बैठे हैं हम तहय्या-ऐ-तूफ़ान किये हुए
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